श्रीभगवानुवाच
त्वयोदितं शोभनमेव शोभने
अनाहुता अप्यभियन्ति बन्धुषु ।
ते यद्यनुत्पादितदोषदृष्टयो
बलीयसानात्म्यमदेन मन्युना ॥ १६ ॥
शब्दार्थ
श्री-भगवान् उवाच—भगवान् ने कहा; त्वया—तुम्हारे द्वारा; उदितम्—कहा; शोभनम्—सही है; एव—निश्चय ही; शोभने— मेरी सुन्दर पत्नी; अनाहुता:—बिना बुलाये; अपि—ही; अभियन्ति—जाते हैं; बन्धुषु—मित्रों के बीच; ते—वे (मित्र); यदि— यदि; अनुत्पादित-दोष-दृष्टय:—दोष न निकालकर; बलीयसा—अधिक महत्त्वपूर्ण; अनात्म्य-मदेन—देह से उत्पन्न अभिमान से; मन्युना—क्रोध से ।.
अनुवाद
प्रभु ने उत्तर दिया : हे सुन्दरी, तुमने कहा कि अपने मित्र के घर बिना बुलाये जाया जा सकता है। यह सच है, किन्तु तब जब वह देहात्मबोध के कारण अतिथि में दोष न निकाले और उस पर क्रुद्ध न हो।
तात्पर्य
भगवान् शिव ने पहले से ही जान लिया था कि जैसे ही सती अपने पिता दक्ष के घर पहुँचेगी तो यद्यपि सती निर्दोष है, किन्तु देहात्म-अभिमान से पूर्ण दक्ष उस की उपस्थिति से अवश्य रुष्ट होगा। शिवजी ने सतर्क किया कि तुम्हारा पिता धन के मद में इतना फूला हुआ है, वह तुम पर क्रुद्ध होगा, और यह तुम्हारे लिए असहनीय होगा। इसलिए उचित यही होगा कि तुम न जाओ। इस सब का शिव को अनुभव हो गया था, क्योंकि उनके दोष-रहित होते हुए भी दक्ष ने उनके प्रति इतने कटु वचन कहे थे।
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