शिवजी ने कहा : यदि कोई शत्रु के बाणों से आहत हो तो उसे उतनी व्यथा नहीं होती जितनी कि स्वजनों के कटु वचनों से होती है क्योंकि यह पीड़ा रात-दिन हृदय में चुभती रहती है।
तात्पर्य
हो सकता है कि सती ने सोचा हो कि वह अपने पिता के घर जाने का दुस्साहस करेगी और यदि उसके पिता कटु वचन कहते भी हैं, तो वह सह लेगी, जिस प्रकार कभी-कभी पुत्र अपने माता-पिता की झिड़कियाँ सहता है। लेकिन शिवजी ने उसे स्मरण दिलाया कि वह इतने कटु वचन नहीं सह पाएगी, क्योंकि मनोविज्ञान कहता है कि भले ही कोई अपने शत्रु के द्वारा पहुँचाई गई पीड़ा सह ले, क्योंकि वह स्वाभाविक होती है, किन्तु जब कोई व्यक्ति अपने सम्बन्धी के कठोर वचनों से आहत होता है, तो उसे उसकी पीड़ा रात-दिन बनी रहती है और कभी-कभी यह पीड़ा इतनी असह्य हो जाती है कि वह व्यक्ति आत्महत्या ही कर लेता है।
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