यदा—जब; अभिषिक्त:—नियुक्त; दक्ष:—दक्ष; तु—लेकिन; ब्रह्मणा—ब्रह्मा द्वारा; परमेष्ठिना—परम शिक्षक; प्रजापतीनाम्— प्रजापतियों का; सर्वेषाम्—समस्त; आधिपत्ये—प्रधान के रूप में; स्मय:—गर्वित; अभवत्—हो गया ।.
अनुवाद
ब्रह्मा ने जब दक्ष को समस्त प्रजापतियों का मुखिया बना दिया तो दक्ष गर्व से फूल उठा।
तात्पर्य
यद्यपि दक्ष शिवजी के प्रति ईर्ष्या-द्वेष तथा शत्रुभाव से पूर्ण था, तथापि उसे समस्त प्रजापतियों का अधीक्षक नियुक्त कर दिया गया। इससे उसको अतीव गर्व हो गया। जब मनुष्य को अपनी भौतिक संपदा पर गर्व हो जाता है, तो वह कोई भी आपदाजनक कार्य कर सकता है, अत: दक्ष ने झूठी प्रतिष्ठा के बल पर कार्य किया। इस अध्याय में इसी का वर्णन है।
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