अत: तुम्हें अपने पिता को, यद्यपि वह तुम्हारे शरीर का दाता है, मिलने नहीं जाना चाहिए क्योंकि वह और उसके अनुयायी मुझसे ईर्ष्या करते हैं। हे परम पूज्या, इसी ईर्ष्या के कारण मेरे निर्दोष होते हुए भी उसने अत्यन्त कटु शब्दों से मेरा अपमान किया है।
तात्पर्य
स्त्री के लिए पति तथा पिता समान रूप से पूज्य हैं। पति स्त्री की युवावस्था में रक्षा करता है, जबकि पिता उसके बाल्यकाल का रक्षक होता है। इस प्रकार दोनों ही पूज्य हैं, किन्तु शरीर को जन्म देने के कारण पिता विशेष रूप से पूज्य होता है। शिवजी ने सती को स्मरण दिलाया, “निस्सन्देह, तुम्हारे पिता मुझसे भी अधिक पूज्य हैं किन्तु सावधान रहना, क्योंकि यदि वे तुम्हें शरीर प्रदान करने वाले हैं, तो जब तुम उन्हें देखने जाओगी तो वे तुम्हारा शरीर ले भी सकते हैं और मुझसे सम्बन्ध होने के कारण तुम्हारा अपमान भी कर सकते हैं। किसी स्वजन द्वारा किया गया अपमान मृत्यु से भी निकृष्ट है विशेष रूप से जब वह अच्छे पद पर स्थित हो।”
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