श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 31: प्रचेताओं को नारद का उपदेश  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  4.31.4 
तमागतं त उत्थाय प्रणिपत्याभिनन्द्य च ।
पूजयित्वा यथादेशं सुखासीनमथाब्रुवन् ॥ ४ ॥
 
शब्दार्थ
तम्—उसको; आगतम्—आया हुआ; ते—सभी प्रचेता; उत्थाय—उठकर; प्रणिपत्य—नमस्कार करके; अभिनन्द्य—स्वागत करके; च—भी; पूजयित्वा—पूजा करके; यथा आदेशम्—विधिपूर्वक; सुख-आसीनम्—सुखपूर्वक आसीन होकर; अथ— इस प्रकार; अब्रुवन्—उन्होंने कहा ।.
 
अनुवाद
 
 प्रचेताओं ने ज्योंही देखा कि नारद मुनि आये हुए हैं, वे नियमानुसार तुरन्त अपने आसनों से खड़े हो गये। यथा अपेक्षित तुरन्त उन्हें नमस्कार किया तथा उनकी पूजा करने लगे और जब उन्होंने देखा कि वे ठीक से आसन ग्रहण कर चुके हैं, तो उन्होंने उनसे प्रश्न पूछना प्रारम्भ किया।
 
तात्पर्य
 यह उल्लेखनीय है कि सभी प्रचेता भगवान् पर अपना मन केन्द्रित करने के उद्देश्य से योगसाधना कर रहे थे।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥