मैत्रेय मुनि ने कहा : सती को असमंजस में पाकर शिवजी यह कह कर शान्त हो गये। सती अपने पिता के घर में अपने सम्बन्धियों को देखने के लिए अत्यधिक इच्छुक थी, किन्तु साथ ही वह शिवजी की चेतावनी से भयभीत थी। मन अस्थिर होने से वह हिंडोले की भाँति कक्ष से बाहर और भीतर आ-जा रही थी।
तात्पर्य
सती का मन दुविधा में था कि वह पिता के घर जाए या शिवजी के आदेश का पालन करे। यह द्वन्द्व इतना प्रबल था कि वह कभी कमरे के बाहर आती तो कभी भीतर जाती; उसकी गति घड़ी के पेंडुलम जैसी हो रही थी।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.