श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 4: सती द्वारा शरीर-त्याग  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  4.4.19 
न वेदवादाननुवर्तते मति:
स्व एव लोके रमतो महामुने: ।
यथा गतिर्देवमनुष्ययो: पृथक्
स्व एव धर्मे न परं क्षिपेत्स्थित: ॥ १९ ॥
 
शब्दार्थ
न—नहीं; वेद-वादान्—वेदों के विधि-विधान; अनुवर्तते—पालन करते; मति:—मन; स्वे—अपनी ओर से; एव—निश्चय ही; लोके—आत्म में; रमत:—भोगता हुआ; महा-मुने:—दिव्य पुरुषों का; यथा—जिस प्रकार; गति:—मार्ग, ढंग; देव- मनुष्ययो:—मनुष्यों तथा देवताओं का; पृथक्—अलग-अलग; स्वे—अपने में; एव—अकेले; धर्मे—कर्तव्य; न—नहीं; परम्—अन्य; क्षिपेत्—आलोचना करे; स्थित:—स्थित होकर ।.
 
अनुवाद
 
 दूसरों की आलोचना करने से श्रेयस्कर है कि अपना कर्तव्य निभाया जाये। बड़े-बड़े दिव्य पुरुष भी कभी-कभी वेदों के विधि-विधानों का उल्लंघन कर देते हैं, क्योंकि उन्हें अनुसरण करने की आवश्यकता नहीं होती, ठीक उसी प्रकार जैसे कि देवता तो आकाश मार्ग में विचरते हैं, किन्तु सामान्य जन धरती पर चलते हैं।
 
तात्पर्य
 उच्चस्थ योगियों तथा अत्यन्त पतित बद्धजीव का आचरण एक सा प्रतीत होता है। उच्चस्थ योगी वेदों के समस्त विधानों का अतिक्रमण कर सकते हैं जिस प्रकार कि आकाश में विचरण करने वाले देवता पृथ्वी के समस्त जंगलों तथा शैलों को पार कर लेते हैं, किन्तु सामान्य पुरुष को ऐसी सुविधा न होने से इन सारे व्यवधानों का सामना करना पड़ता है। यद्यपि परम प्रिय शिव वेदों के विधि-विधानों का लेशमात्र भी पालन करते प्रतीत नहीं होते, और ऐसी अवज्ञा से उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। किन्तु यदि सामान्य पुरुष उनकी नकल करना चाहे तो वह बड़ी भारी भूल करेगा। सामान्य पुरुष को वेदों के समस्त विधि-विधानों का पालन करना चाहिए जबकि दिव्य स्थिति को प्राप्त पुरुष को इन सबके पालन की आवश्यकता नहीं रह जाती। दक्ष ने शिव पर दोषारोपण किया था कि वे वेदों के कठोर विधि-विधानों का पालन नहीं करते, किन्तु सती ने बलपूर्वक बताना चाहा कि उन्हें ऐसे नियमों के पालन की कोई आवश्यकता न थी। कहा गया है कि जो सूर्य या अग्नि के समान तेजस्वी हो उसे शुद्धि या अशुद्धि की कोई परवाह नहीं रहती। धूप अपवित्र स्थान को जीवाणु रहित कर सकती है, किन्तु यदि अन्य किसी को वहाँ से निकल कर जाना पड़े तो वह प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगा। मनुष्य को चाहिए कि शिवजी की नकल न करे, अपितु अपने निर्दिष्ट कर्तव्यों का दृढ़ता से पालन करे। उसे चाहिए कि वह शिवजी जैसे महापुरुष की कभी भी निन्दा न करे।
 
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