जब शिवजी मुझे दाक्षायणी कह कर पुकारते हैं, तो अपने पारिवारिक सम्बन्ध के कारण मैं तुरन्त खिन्न हो उठती हूँ और मेरी सारी प्रसन्नता तथा हँसी तुरन्त भाग जाती है। मुझे अत्यन्त खेद होता है कि मेरा यह थैले जैसा शरीर आपके द्वारा उत्पन्न है। अत: मैं इसे त्याग दूँगी।
तात्पर्य
दाक्षायणी शब्द का अर्थ है “राजा दक्ष की पुत्री।” कभी-कभी पति तथा पत्नी अवकाश के क्षणों में बातें करते तो शिवजी सती को “दाक्षायणी” कहते और चूँकि इस शब्द से ही उन्हें राजा दक्ष से अपने सम्बन्ध की याद आ जाती तो वह लज्जित होतीं, क्योंकि दक्ष तो समस्त अपराधों का अवतार था। वह द्वेष-रूप था, क्योंकि वह वृथा ही शिव जैसे महापुरुष की निन्दा करता था। अत: दाक्षायणी शब्द को सुनते ही वे शोकाकुल हो उठतीं, क्योंकि दक्ष से उत्पन्न होने से उनका शरीर भी अपराधों का प्रतीक था। चूँकि उनका शरीर सतत अप्रसन्नता का कारण बना रहता था, इसलिए उन्होंने उसे त्याग देने का निश्चय किया।
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