जब सती ने कोपवश अपना शरीर भस्म कर दिया तो समूचे ब्रह्माण्ड में घोर कोलाहल मच गया कि सर्वाधिक पूज्य देवता शिव की पत्नी सती ने इस प्रकार अपना शरीर क्यों छोड़ा?
तात्पर्य
ब्रह्माण्ड के विभिन्न लोकों के देवताओं में कोलाहल मच गया, क्योंकि सती राजाओं में श्रेष्ठ राजा दक्ष की कन्या और देवताओं में श्रेष्ठ शिवजी की पत्नी थीं। वे इतनी क्रुद्ध क्यों हुईं कि उन्होंने अपना शरीर छोड़ दिया? चूँकि वे एक महापुरुष की पुत्री और महात्मा की पत्नी थीं, अत: उन्हें किसी प्रकार का अभाव न था, किन्तु तो भी उन्होंने असन्तुष्ट होकर शरीर छोड़ दिया। सचमुच यह आश्चर्यजनक था। भले ही कोई सर्वाधिक ऐश्वर्य को प्राप्त क्यों न हो, उसे पूर्ण सन्तोष प्राप्त नहीं हो सकता। ऐसी कोई भी वस्तु नहीं थी जिसे वे अपने पिता या पति से सम्बन्धित होने के कारण प्राप्त न कर सकतीं थीं, किन्तु तो भी किसी कारणवश वे असन्तुष्ट थीं। इसीलिए श्रीमद्भागवत में (१.२.६) बतलाया गया है कि मनुष्य को वास्तविक सन्तोष (ययात्मा सुप्रसीदति) प्राप्त करना चाहिए, किन्तु आत्मा—शरीर, मन तथा आत्मा—ये सभी तभी सन्तुष्ट होते हैं जब परम सत्य के प्रति भक्ति उत्पन्न होती है। स वै पुंसां परो धर्मो यतो भक्तिरधोक्षजे। अधोक्षज का अर्थ है परम सत्य। यदि कोई भगवान् के प्रति ऐसा अटूट प्रेम उत्पन्न कर ले तो उसे पूर्ण सन्तोष प्राप्त हो सकता है, अन्यथा इस जगत में या अन्यत्र सन्तोष की कोई सम्भावना नहीं है।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.