श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 4: सती द्वारा शरीर-त्याग  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  4.4.33 
अध्वर्युणा हूयमाने देवा उत्पेतुरोजसा ।
ऋभवो नाम तपसा सोमं प्राप्ता: सहस्रश: ॥ ३३ ॥
 
शब्दार्थ
अध्वर्युणा—पुरोहित, भृगु द्वारा; हूयमाने—आहुति डाले जाने पर; देवा:—देवता; उत्पेतु:—प्रकट हुए; ओजसा—परम शक्तिपूर्वक; ऋभव:—ऋभुगण; नाम—नामक; तपसा—तपस्या द्वारा; सोमम्—सोम; प्राप्ता:—प्राप्त हुए; सहस्रश:—हजारों ।.
 
अनुवाद
 
 जब भृगु मुनि ने अग्नि में आहुति डाली तो तत्क्षण ऋभु नामक हजारों देवता प्रकट हो गये। वे सभी शक्तिशाली थे और उन्होंने सोम अर्थात् चन्द्र से शक्ति प्राप्त की थी।
 
तात्पर्य
 यहाँ कहा गया है कि अग्नि में आहुति डालने तथा यजुर्वेद से मंत्रो के उच्चारण से ऋभु नामक हजारों देवता उत्पन्न हो गये। भृगुमुनि जैसे ब्राह्मण इतने शक्तिशाली हुआ करते थे कि वे वैदिक मंत्रों का उच्चारण करके ऐसे शक्तिमान देवताओं को उत्पन्न कर सकते थे। आज भी वैदिक मंत्र उपलब्ध हैं, किन्तु उच्चारण करने वाले नहीं हैं। वैदिक मंत्रों के उच्चारण से, अथवा गायत्री या ऋक्- मंत्र के उच्चारण से मन-वांछित फल प्राप्त हो सकता है। इस कलियुग में भगवान् चैतन्य ने केवल हरे कृष्ण के कीर्तन द्वारा सभी सिद्धियों की प्राप्ति सम्भव बतलाई है।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥