श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 4: सती द्वारा शरीर-त्याग  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  4.4.5 
तां सारिकाकन्दुकदर्पणाम्बुज
श्वेतातपत्रव्यजनस्रगादिभि: ।
गीतायनैर्दुन्दुभिशङ्खवेणुभि-
र्वृषेन्द्रमारोप्य विटङ्किता ययु: ॥ ५ ॥
 
शब्दार्थ
ताम्—उसकी (सती को); सारिका—पालतू पक्षी मैना; कन्दुक—गेंद; दर्पण—शीशा; अम्बुज—कमल का फूल; श्वेत- आतपत्र—सफेद छाता; व्यजन—पंखा; स्रक्—माला; आदिभि:—इत्यादि; गीत-अयनै:—संगीत के साथ; दुन्दुभि—डुग्गी, ढोल; शङ्ख—शंख; वेणुभि:—मुरली से; वृष-इन्द्रम्—बैल पर; आरोप्य—चढ़ाकर; विटङ्किता:—आभूषित; ययु:—वे गये ।.
 
अनुवाद
 
 शिव के अनुचरों ने सती को बैल पर चढ़ा लिया और उन्हें उनकी पालतू चिडिय़ा (मैना) दे दी। उन्होंने कमल का फूल, एक दर्पण तथा उनके आमोद-प्रमोद की सारी सामग्री ले ली और उनके ऊपर एक विशाल छत्र तान दिया। उनके पीछे ढोल, शंख तथा बिगुल बजाता हुआ दल राजसी शोभा यात्रा के समान भव्य लग रहा था।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥