श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 5: दक्ष के यज्ञ का विध्वंस  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  4.5.1 
मैत्रेय उवाच
भवो भवान्या निधनं प्रजापते-
रसत्कृताया अवगम्य नारदात् ।
स्वपार्षदसैन्यं च तदध्वरर्भुभि-
र्विद्रावितं क्रोधमपारमादधे ॥ १ ॥
 
शब्दार्थ
मैत्रेय: उवाच—मैत्रेय ने कहा; भव:—शिव; भवान्या:—सती का; निधनम्—मृत्यु; प्रजापते:—प्रजापति दक्ष के कारण; असत्-कृताया:—अपमानित होकर; अवगम्य—सुनकर; नारदात्—नारद से; स्व-पार्षद-सैन्यम्—अपने पार्षदों के सैनिक; च—तथा; तत्-अध्वर—उस (दक्ष) के यज्ञ (से उत्पन्न); ऋभुभि:—ऋभुओं द्वारा; विद्रावितम्—खदेड़ दिए गये; क्रोधम्— क्रोध; अपारम्—असीम; आदधे—प्रदर्शित किया ।.
 
अनुवाद
 
 मैत्रेय ने कहा; जब शिव ने नारद से सुना कि उनकी पत्नी सती प्रजापति दक्ष द्वारा किये गये अपमान के कारण मर चुकी हैं और ऋभुओं द्वारा उनके सैनिक खदेड़ दिये गये हैं, तो वे अत्यधिक क्रोधित हुए।
 
तात्पर्य
 शिवजी ने समझ लिया था कि दक्ष की सबसे छोटी पुत्री होने के कारण, सती ही शिव के कार्य की शुद्धता का प्रमाण प्रस्तुत कर सकती हैं और दक्ष तथा उनके बीच की भ्रान्ति (मनोमालिन्य) को दूर कर सकती हैं। किन्तु इस तरह का समझौता नहीं हो पाया। उल्टे जब बिना बुलाये ही सती अपने पिता के घर पहुँचीं तो उनके प्रति सम्मान प्रदर्शित न करके उनके पिता ने उनका जानबूझकर अपमान किया। सती स्वयं ही अपने पिता दक्ष का वध कर सकती थीं, क्योंकि वे साक्षात् भौतिक शक्ति हैं और उनमें इस ब्रह्माण्ड के अंदर मारने तथा उत्पन्न करने की अपार शक्ति है। ब्रह्म संहिता में उनकी शक्ति का वर्णन इस प्रकार हुआ है—वे अनेक ब्रह्माण्डों का सृजन एवं संहार करने में सक्षम हैं। किन्तु इतनी शक्तिमान होते हुए भी वे पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् कृष्ण के आदेश के अनुसार ही उनकी छाया की भाँति कार्य करती हैं। सती के लिए अपने पिता को दंडित करना कठिन न था, लेकिन उन्होंने सोचा कि पुत्री होने के नाते अपने पिता का वध करना उचित नहीं है। इस तरह उन्होंने अपने शरीर को ही त्याग देने का निश्चय किया, जो उस के शरीर से उन्हें प्राप्त हुआ था और दक्ष ने उन्हें रोका तक नहीं ।

जब सती ने अपना शरीर त्याग दिया तो नारद ने इसकी जानकारी शिवजी को दी। नारद सदा ऐसी महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ ले जाते हैं। जब शिव ने सुना कि उनकी साध्वी पत्नी मर चुकी है, तो वे स्वाभाविक रूप से अत्यन्त क्रुद्ध हुए। उन्हें यह भी पता चला कि भृगु मुनि ने यजुर्वेद मंत्रों के पाठ द्वारा ऋभुओं को उत्पन्न किया है और इन देवताओं ने उनके उन समस्त पार्षदों को खदेड़ दिया है, जो यज्ञ स्थल में उपस्थित थे। अत: उन्होंने इस अपमान का बदला लेना चाहा और निश्चय किया कि दक्ष का वध कर दिया जाय, क्योंकि वही सती की मृत्यु का कारण था।

 
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