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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 5: दक्ष के यज्ञ का विध्वंस  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  4.5.16 
अबाधन्त मुनीनन्ये एके पत्नीरतर्जयन् ।
अपरे जगृहुर्देवान् प्रत्यासन्नान् पलायितान् ॥ १६ ॥
 
शब्दार्थ
अबाधन्त—रास्ता रोक लिया; मुनीन्—मुनियों को; अन्ये—दूसरे; एके—कुछ ने; पत्नी:—स्त्रियों को; अतर्जयन्—डराया धमकाया; अपरे—अन्य; जगृहु:—बन्दी कर लिया; देवान्—देवताओं को; प्रत्यासन्नान्—निकट ही; पलायितान्—भगने वालों को ।.
 
अनुवाद
 
 इनमें से कुछ ने भागते मुनियों का रास्ता रोक लिया, किन्हीं ने वहाँ पर एकत्र स्त्रियों को डराया-धमकाया और कुछ ने पण्डाल से भागते हुए देवताओं को बन्दी बना लिया।
 
 
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