श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 5: दक्ष के यज्ञ का विध्वंस  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  4.5.21 
पूष्णो ह्यपातयद्दन्तान् कालिङ्गस्य यथा बल: ।
शप्यमाने गरिमणि योऽहसद्दर्शयन्दत: ॥ २१ ॥
 
शब्दार्थ
पूष्ण:—पूषा का; हि—चूँकि; अपातयत्—निकाल लिया; दन्तान्—दाँत; कालिङ्गस्य—कलिंग के राजा के; यथा—जिस प्रकार; बल:—बलदेव ने; शप्यमाने—शाप दिये जाने पर; गरिमणि—शिव; य:—जो (पूषा); अहसत्—हँसा था; दर्शयन्— दिखाते हुए; दत:—दाँत ।.
 
अनुवाद
 
 जिस प्रकार बलदेव ने अनिरुद्ध के विवाहोत्सव में द्यूतक्रीड़ा के समय कलिंगराज दंतवक्र के दाँत निकाल लिये थे, उसी प्रकार से वीरभद्र ने दक्ष तथा पूषा दोनों के दाँत उखाड़ लिये, क्योंकि दक्षने शिव को शाप दिये जाते समय दाँत दिखाये थे और पूषा ने भी सहमति स्वरूप हँसते हुए दाँत दिखाए थे।
 
तात्पर्य
 यहाँ पर कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध के विवाह का सन्दर्भ आया है। वह दंतवक्र की कन्या का अपहरण करने के पश्चात् पकड़ लिया गया था। जैसे ही उसे अपहरण का दण्ड दिया जाने वाला था, उसी समय द्वारका से बलराम सहित सैनिक आ गये और क्षत्रियों में युद्ध ठन गया। इस प्रकार का युद्ध विशेष रूप से विवाहोत्सवों के समय अत्यधिक प्रचलित था, क्योंकि तब सभी में एक दूसरे को ललकारने का जोश रहता था। ऐसी स्थिति में युद्ध अवश्यम्भावी होता था और उसमें लोग मारे जाते थे तथा आपदा आती रहती थी। इस प्रकार के युद्ध के बाद समझौता हो जाता था और सब कुछ ठीक हो जाता था। दक्ष का यह यज्ञ बहुत कुछ ऐसा ही था। अब वे सभी—दक्ष तथा भग और पूषा देवता एवं भृगुमुनि—शिव के सैनिकों द्वारा दण्डित हुए, किन्तु बाद में सब कुछ शान्त हो गया। अत: एक दूसरे से लडऩे की यह प्रवृत्ति वस्तुत: शत्रुतापूर्ण न थी। चूँकि प्रत्येक व्यक्ति इतना शक्तिशाली था और वैदिक मंत्र द्वारा अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना चाह रहा था, अत: दक्ष के यज्ञ में विभिन्न पक्षों द्वारा युद्ध कौशल का अच्छा प्रदर्शन हुआ।
 
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