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श्लोक 4.5.22  |
आक्रम्योरसि दक्षस्य शितधारेण हेतिना ।
छिन्दन्नपि तदुद्धर्तुं नाशक्नोत् त्र्यम्बकस्तदा ॥ २२ ॥ |
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शब्दार्थ |
आक्रम्य—बैठकर; उरसि—छाती पर; दक्षस्य—दक्ष की; शित-धारेण—तीक्ष्ण धार वाले; हेतिना—हथियार से; छिन्दन्— काटते हुए; अपि—भी; तत्—वह (सिर); उद्धर्तुम्—पृथक् करने में; न अशक्नोत्—समर्थ न हुआ; त्रि-अम्बक:—वीरभद्र (तीन नेत्रों वाला); तदा—तत्पश्चात् ।. |
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अनुवाद |
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तब वह दैत्य सदृश पुरुष वीरभद्र दक्ष की छाती पर चढ़ बैठा और तीक्ष्ण हथियार से उसके शरीर से सिर काटकर अलग करने का प्रयत्न करने लगा, किन्तु सफल नहीं हुआ। |
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