तत:—उस समय; अतिकाय:—विशाल शरीर वाला (वीरभद्र); तनुवा—अपने शरीर के साथ; स्पृशन्—स्पर्श करता; दिवम्—आकाश; सहस्र—एक हजार; बाहु:—हाथ; घन-रुक्—श्याम रंग का; त्रि-सूर्य-दृक्—तीन सूर्यों के समानतेज वाला; कराल-दंष्ट्र:—अत्यन्त भयानक दाढ़ों वाला; ज्वलत्-अग्नि—जलती हुई आग (के समान); मूर्धज:—शिर पर बाल धारण किये; कपाल-माली—नरमुंडों की माला पहने; विविध—अनेक प्रकार से; उद्यत—उठाये हुए; आयुध:—हथियारों से लैस ।.
अनुवाद
उससे आकाश के समान ऊँचा तथा तीन सूर्यों के सम्मिलित तेज के समान एक भयानक श्याम वर्ण का असुर उत्पन्न हुआ, जिसके दाँत अत्यन्त भयानक थे और उसके सिर के केश प्रज्ज्वलित अग्नि के समान लग रहे थे। उसके हजारों भुजाएँ थीं, जो अस्त्र-शस्त्रों से लैस थीं और उसने नरमुंडों की माला पहन रखी थी।
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