श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 5: दक्ष के यज्ञ का विध्वंस  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  4.5.9 
प्रसूतिमिश्रा: स्त्रिय उद्विग्नचित्ता
ऊचुर्विपाको वृजिनस्यैव तस्य ।
यत्पश्यन्तीनां दुहितृणां प्रजेश:
सुतां सतीमवदध्यावनागाम् ॥ ९ ॥
 
शब्दार्थ
प्रसूति-मिश्रा:—प्रसूति इत्यादि; स्त्रिय:—स्त्रियाँ; उद्विग्न-चित्ता:—अत्यन्त उद्विग्न; ऊचु:—बोली; विपाक:—दुर्दैव; वृजिनस्य—पापकर्म का; एव—निस्सन्देह; तस्य—उसका (दक्ष का); यत्—क्योंकि; पश्यन्तीनाम्—देखने वाली; दुहितृणाम्—अपनी बहनों का; प्रजेश:—प्रजा के स्वामी (दक्ष); सुताम्—पुत्री; सतीम्—सती; अवदध्यौ—अपमानित; अनागाम्—पूर्णतया निर्दोष ।.
 
अनुवाद
 
 दक्ष की पत्नी प्रसूति एवं वहाँ पर एकत्र अन्य स्त्रियों ने अत्यन्त आकुल होकर कहा : यह संकट दक्ष के कारण सती की मृत्यु से उत्पन्न है, क्योंकि निर्दोष सती ने अपनी बहनों के देखते देखते अपना शरीर त्याग दिया है।
 
तात्पर्य
 उदारमना प्रसूति तुरन्त समझ गई कि कठोरहृदय प्रजापति दक्ष के अशुभ कार्य से ही यह संकट आ खड़ा हुआ है। वह इतना क्रूर था कि अपनी सबसे छोटी पुत्री को उसकी बहनों के समक्ष आत्महत्या करते हुए भी रोक नहीं सका। सती की माँ ही समझ सकती थी कि अपने पिता द्वारा अपमानित होने से सती को कितना कष्ट हुआ होगा। सती अन्य सभी बेटियों के साथ ही उपस्थित थी और दक्ष ने जानबूझकर उसे छोडक़र अन्य सभी का भली भाँति सत्कार किया था, क्योंकि वह शिव की पत्नी जो ठहरी। इस विचार से दक्ष की पत्नी को आसन्न संकट का विश्वास हो चुका था और उसे ज्ञात था कि दक्ष को अपने इस जघन्य कार्य के लिए मरने के लिए तैयार रहना चाहिए।
 
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