श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 6: ब्रह्मा द्वारा शिवजी को मनाना  »  श्लोक 1-2
 
 
श्लोक  4.6.1-2 
मैत्रेय उवाच
अथ देवगणा: सर्वे रुद्रानीकै: पराजिता: ।
शूलपट्टिशनिस्त्रिंशगदापरिघमुद्गरै: ॥ १ ॥
सञ्छिन्नभिन्नसर्वाङ्गा: सर्त्विक्सभ्या भयाकुला: ।
स्वयम्भुवे नमस्कृत्य कार्त्स्‍न्येनैतन्न्यवेदयन् ॥ २ ॥
 
शब्दार्थ
मैत्रेय: उवाच—मैत्रेय ने कहा; अथ—इसके पश्चात्; देव-गणा:—देवता; सर्वे—समस्त; रुद्र-अनीकै:—शिव के सैनिकों से; पराजिता:—हार कर; शूल—त्रिशूल; पट्टिश—तेजधार का भाला; निस्त्रिंश—तलवार; गदा—गदा; परिघ—लोहे की साँग, परिघ; मुद्गरै:—मुद्गर से; सञ्छिन्न-भिन्न-सर्व-अङ्गा:—अंग-प्रत्यंग घायल; स-ऋत्विक्-सभ्या:—समस्त पुरोहित तथा यज्ञ सभा के सदस्यों सहित; भय-आकुला:—अत्यधिक भय से; स्वयम्भुवे—भगवान् ब्रह्मा को; नमस्कृत्य—नमस्कार करके; कार्त्स्न्येन—विस्तार में; एतत्—दक्ष के यज्ञ की घटना; न्यवेदयन्—विस्तार से निवेदन किया, सूचित किया ।.
 
अनुवाद
 
 जब समस्त पुरोहित तथा यज्ञ-सभा के सभी सदस्य और देवतागण शिवजी के सैनिकों द्वारा पराजित कर दिये गये और त्रिशूल तथा तलवार जैसे हथियारों से घायल कर दिये गये, तब वे डरते हुए ब्रह्माजी के पास पहुँचे। उनको नमस्कार करने के पश्चात्,जो हुआ था, उन्होंने विस्तार से उसके विषय में बोलना प्रारम्भ किया।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥