नानामलप्रस्रवणैर्नानाकन्दरसानुभि: ।
रमणं विहरन्तीनां रमणै: सिद्धयोषिताम् ॥ ११ ॥
शब्दार्थ
नाना—विविध; अमल—निर्मल, पारदर्शी; प्रस्रवणै:—जल प्रपातों से; नाना—विविध; कन्दर—गुफाएँ; सानुभि:—चोटियों से; रमणम्—आनन्द प्रदान करती हुई; विहरन्तीनाम्—विहार करती हुई; रमणै:—अपने-अपने प्रेमियों सहित; सिद्ध योषिताम्—योगियों की प्रियतमाओं के ।.
अनुवाद
वहाँ अनेक झरने हैं और पर्वतों में अनेक गुफाएँ हैं जिनमें योगियों की अत्यन्त सुन्दर पत्नियाँ रहती हैं।
____________________________
All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥