भागवत पुराण » स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति » अध्याय 6: ब्रह्मा द्वारा शिवजी को मनाना » श्लोक 16 |
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| | श्लोक 4.6.16  | स्वर्णार्णशतपत्रैश्च वररेणुकजातिभि: ।
कुब्जकैर्मल्लिकाभिश्च माधवीभिश्च मण्डितम् ॥ १६ ॥ | | शब्दार्थ | स्वर्णार्ण—सुनहरे रंग का; शत-पत्रै:—कमलों से; च—तथा; वर-रेणुक-जातिभि:—वर, रेणुक तथा मालती से; कुब्जकै:— कुब्जकों से; मल्लिकाभि:—मल्लिकाओं से; च—तथा; माधवीभि:—माधवी से; च—तथा; मण्डितम्—सुशोभित, अलंकृत ।. | | अनुवाद | | वहाँ अन्य वृक्ष भी हैं, जो पर्वत की शोभा बढ़ाते हैं, यथा सुनहरा कमलपुष्प, दारचीनी, मालती, कुब्ज, मल्लिका तथा माधवी। | | |
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