कुमुदोत्पलकह्लारशतपत्रवनर्द्धिभि: ।
नलिनीषु कलं कूजत्खगवृन्दोपशोभितम् ॥ १९ ॥
मृगै: शाखामृगै: क्रोडैर्मृगेन्द्रैर्ऋ क्षशल्यकै: ।
गवयै: शरभैर्व्याघ्रै रुरुभिर्महिषादिभि: ॥ २० ॥
शब्दार्थ
कुमुद—कुमुद; उत्पल—उत्पल; कह्लार—कल्हार; शतपत्र—कमल; वन—जंगल; ऋद्धिभि:—से आच्छादित; नलिनीषु— झीलों में; कलम्—अत्यन्त मधुर; कूजत्—चहकते हुए; खग—पक्षियों का; वृन्द—समूह; उपशोभितम्—से अलकृंत; मृगै:— हिरनों से; शाखा-मृगै:—बन्दरों से; क्रोडै:—सुअरों से; मृग-इन्द्रै:—सिंहों से; ऋक्ष-शल्यकै:—रीछों तथा साहियों से; गवयै:—नील गायों से; शरभै:—जंगली गधों से; व्याघ्रै:—बाघों से; रुरुभि:—एक प्रकार के छोटे मृग से; महिष-आदिभि:— भैंसे आदि से ।.
अनुवाद
वहाँ कई प्रकार के कमल पुष्प हैं यथा कुमुद, उत्पल, शतपत्र। वहाँ का वन अलकृंत उद्यान सा प्रतीत होता है और छोटी-छोटी झीलें विभिन्न प्रकार के पक्षियों सें भरी पड़ी हैं, जो अत्यन्त मीठे स्वर से चहकती हैं। साथ ही कई प्रकार के अन्य पशु भी पाये जाते हैं, यथा मृग, बन्दर, सुअर, सिंह, रीछ, साही, नील गाय, जंगली गधे, लघुमृग, भैंसे इत्यादि जो अपने जीवन का पूरा आनन्द उठाते हैं।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.