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श्लोक 4.6.24  |
नन्दा चालकनन्दा च सरितौ बाह्यत: पुर: ।
तीर्थपादपदाम्भोजरजसातीव पावने ॥ २४ ॥ |
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शब्दार्थ |
नन्दा—नन्दा; च—तथा; अलकनन्दा—अलकनन्दा; च—तथा; सरितौ—दो नदियाँ; बाह्यत:—बाहर की ओर; पुर:—नगरी से; तीर्थ-पाद—भगवान् के; पद-अम्भोज—चरणकमल की; रजसा—धूलि से; अतीव—अत्यधिक; पावने—पवित्र हुई ।. |
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अनुवाद |
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उन्होंने नन्दा तथा अलकनन्दा नामक दो नदियाँ भी देखीं। ये दोनों नदियाँ भगवान् गोविन्द के चरणकमलों की रज से पवित्र हो चुकी हैं। |
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