ययोस्तत्स्नानविभ्रष्टनवकुङ्कुमपिञ्जरम् ।
वितृषोऽपि पिबन्त्यम्भ: पाययन्तो गजा गजी: ॥ २६ ॥
शब्दार्थ
ययो:—जिन दोनों नदियों में; तत्-स्नान—उनके स्नान से; विभ्रष्ट—गिरे हुए; नव—ताजे; कुङ्कुम—कुंकुम चूर्ण से; पिञ्जरम्— पीला; वितृष:—प्यासे न होने पर; अपि—भी; पिबन्ति—पीते हैं; अम्भ:—जल; पाययन्त:—पिलाते हैं; गजा:—हाथी; गजी:—हथिनियाँ ।.
अनुवाद
स्वर्गलोक की सुन्दरियों द्वारा जल में स्नान करने के पश्चात् उनके शरीर के कुंकुम के कारण वह जल पीला तथा सुगंधित हो जाता है। अत: वहाँ पर स्नान करने के लिए हाथी अपनी-अपनी पत्नी हथिनियों के साथ आते हैं और प्यासे न होने पर भी वे उस जल को पीते हैं।
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