ऐसा वातावरण जंगली हाथियों को विचलित कर रहा था, जो चन्दन वृक्ष के जंगल में झुंडों में एकत्र हुए थे। बहती हुई वायु अप्सराओं के मनों को अधिकाधिक इन्द्रियभोग के लिए विचलित किए जा रही थी।
तात्पर्य
जब भी इस भौतिक जगत में सुन्दर वातावरण मिलता है, तो विषयीजनों के मन में तुरन्त ही काम-वासना जाग्रत हो जाती है। यह प्रवृत्ति भौतिक ब्रह्माण्ड में न केवल इस लोक में, वरन् उच्चतर लोकों में भी पाई जाती है। इस जगत में ऐसे वातावरण का मस्तिष्क पर जो प्रभाव पड़ता है, उससे सर्वथा विपरीत वैकुण्ठ लोक में होता है। वहाँ की स्त्रियाँ इस लोक की स्त्रियों से सैकड़ों-हजारों गुना अधिक सुन्दर होती हैं और वहाँ का आध्यात्मिक वातावरण भी उत्तम होता है। ऐसे मनमोहक वातावरण के होते हुए भी वैकुण्ठलोक के वासियों का मन भगवान् के यशोगान में इतना निमग्न रहता है कि इस सुख के आगे वह काम-सुख तुच्छ प्रतीत होता है, जो भौतिक जगत के समस्त आनन्द की चरमावस्था है। दूसरे शब्दों में, श्रेष्ठतर वातावरण तथा सुविधा होने पर भी वहाँ विषयी जीवन को कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता। जैसाकि भगवद्गीता में (२.५९) कहा गया है—परं दृष्ट्वा निवर्तते— आध्यात्मिक दृष्टि से वहाँ के वासी इतने उन्नत होते हैं कि ऐसी आध्यात्मिकता की उपस्थिति में विषयी जीवन तुच्छ लगता है।
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