वह वट वृक्ष आठ सौ मील ऊँचा था और उसकी शाखाएँ चारों ओर छह सौ मील तक फैली थीं। उसकी मनोहर छाया से सतत शीतलता छाई थी, तो भी पक्षियों की गूँज सुनाई नहीं पड़ रही थी।
तात्पर्य
सामान्य रूप से प्रत्येक वृक्ष में पक्षियों के घोंसले रहते हैं और शाम को सारे पक्षी एकत्र होकर शोर करते हैं। किन्तु ऐसा लगता है कि इस वट वृक्ष में घोंसले न थे जिससे वह शान्त था। शोर अथवा गर्मी न होने से यह स्थान ध्यान के लिए सर्वथा उपयुक्त था।
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