स इत्थमादिश्य सुरानजस्तु तै:
समन्वित: पितृभि: सप्रजेशै: ।
ययौ स्वधिष्ण्यान्निलयं पुरद्विष:
कैलासमद्रिप्रवरं प्रियं प्रभो: ॥ ८ ॥
शब्दार्थ
स:—वह (ब्रह्मा); इत्थम्—इस प्रकार; आदिश्य—शिक्षा देकर; सुरान्—देवों को; अज:—ब्रह्मा; तु—तब; तै:—उनके; समन्वित:—सहित; पितृभि:—पितरों; स-प्रजेशै:—जीवात्माओं के स्वामियों सहित; ययौ—चले गये; स्व-धिष्ण्यात्—अपने स्थान से; निलयम्—धाम; पुर-द्विष:—शिव का; कैलासम्—कैलास; अद्रि-प्रवरम्—पर्वतों में श्रेष्ठ; प्रियम्—प्रिय; प्रभो:— प्रभु (शिव) का ।.
अनुवाद
इस प्रकार समस्त देवताओं, पितरों तथा जीवात्माओं के अधिपतियों को उपदेश देकर ब्रह्मा ने उन सबों को अपने साथ ले लिया और शिव के धाम पर्वतों में श्रेष्ठ कैलास पर्वत के लिए प्रस्थान किया।
तात्पर्य
यहाँ से आगे के चौदह श्लोकों में शिव के धाम, कैलास का वर्णन किया गया है।
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