हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 7: दक्ष द्वारा यज्ञ सम्पन्न करना  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  4.7.1 
मैत्रेय उवाच
इत्यजेनानुनीतेन भवेन परितुष्यता ।
अभ्यधायि महाबाहो प्रहस्य श्रूयतामिति ॥ १ ॥
 
शब्दार्थ
मैत्रेय:—मैत्रेय ने; उवाच—कहा; इति—इस प्रकार; अजेन—ब्रह्मा द्वारा; अनुनीतेन—शान्त किया जाकर; भवेन—शिव द्वारा; परितुष्यता—पूर्णतया सन्तुष्ट होकर; अभ्यधायि—कहा; महा-बाहो—हे विदुर; प्रहस्य—हँस कर; श्रूयताम्—सुनो; इति—इस प्रकार ।.
 
अनुवाद
 
 मैत्रेय मुनि ने कहा : हे महाबाहु विदुर, भगवान् ब्रह्मा के शब्दों से शान्त होकर शिव ने उनकी प्रार्थना का उत्तर इस प्रकार दिया।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥