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श्लोक 4.7.1  |
मैत्रेय उवाच
इत्यजेनानुनीतेन भवेन परितुष्यता ।
अभ्यधायि महाबाहो प्रहस्य श्रूयतामिति ॥ १ ॥ |
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शब्दार्थ |
मैत्रेय:—मैत्रेय ने; उवाच—कहा; इति—इस प्रकार; अजेन—ब्रह्मा द्वारा; अनुनीतेन—शान्त किया जाकर; भवेन—शिव द्वारा; परितुष्यता—पूर्णतया सन्तुष्ट होकर; अभ्यधायि—कहा; महा-बाहो—हे विदुर; प्रहस्य—हँस कर; श्रूयताम्—सुनो; इति—इस प्रकार ।. |
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अनुवाद |
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मैत्रेय मुनि ने कहा : हे महाबाहु विदुर, भगवान् ब्रह्मा के शब्दों से शान्त होकर शिव ने उनकी प्रार्थना का उत्तर इस प्रकार दिया। |
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