श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 7: दक्ष द्वारा यज्ञ सम्पन्न करना  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  4.7.11 
भवस्तवाय कृतधीर्नाशक्नोदनुरागत: ।
औत्कण्ठ्याद्बाष्पकलया सम्परेतां सुतां स्मरन् ॥ ११ ॥
 
शब्दार्थ
भव-स्तवाय—शिव की स्तुति के लिए; कृत-धी:—कृतसंकल्प; न—नहीं ही; अशक्नोत्—समर्थ था; अनुरागत:—विचार से; औत्कण्ठ्यात्—उत्कंठा से; बाष्प-कलया—आँखों में आँसू भर कर; सम्परेताम्—मृत; सुताम्—पुत्री; स्मरन्—स्मरण करते हुए ।.
 
अनुवाद
 
 राजा दक्ष ने शिव की स्तुति करनी चाही, किन्तु अपनी पुत्री सती की दुर्भाग्यपूर्ण-मृत्यू का स्मरण हो आने से उसके नेत्र आँसुओं से भर आये और शोक से उसकी वाणी अवरुद्ध हो गई। वह कुछ भी न कह सका।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥