वैष्णवम्—विष्णु या उनके भक्तों के हेतु; यज्ञ—यज्ञ; सन्तत्यै—कृत्यों के लिए; त्रि-कपालम्—तीन प्रकार की भेंटें; द्विज- उत्तमा:—ब्राहमणों में श्रेष्ठ; पुरोडाशम्—पुरोडाश नामक आहुतिनि; निरवपन्—भेंट की गई; वीर—वीरभद्र तथा शिव के अन्य अनुचर; संसर्ग—स्पर्श के कारण दोष; शुद्धये—शुद्धि के लिए ।.
अनुवाद
तत्पश्चात ब्राह्मणों ने यज्ञ कार्य फिर से प्रारम्भ करने के लिए वीरभद्र तथा शिव के भूत-प्रेत सदृश अनुचरों के स्पर्श से प्रदूषित हो चुके यज्ञ स्थल को पवित्र करने की व्यवस्था की। तब जाकर उन्होंने अग्नि में पुरोडाश नामक आहुतियाँ अर्पित की।
तात्पर्य
वीरभद्र आदि शिव के अनुचर तथा भक्त वीर कहलाते हैं और वे भूतप्रेतादि हैं। उन्होंने अपनी उपस्थिति से न केवल यज्ञस्थल को दूषित किया था, वरन् मलमूत्र विसर्जित करके सारी व्यवस्था भंग कर दी थी। फलत: सबसे पहले पुरोडाश आहुति देकर गंदगी को दूर करना था। कोई भी विष्णु-यज्ञ अशुद्ध अवस्था में सम्पन्न नहीं हो सकता। अशुद्ध अवस्था में कोई वस्तु भेंट करना सेवापराध कहलाता है। मन्दिर में विष्णु के विग्रह की पूजा भी विष्णु-यज्ञ है। अत: समस्त विष्णुमन्दिरों में, जो पुरोहित अर्चना-विधि की देखभाल करते हैं उन्हें शुद्ध रहना चाहिए। प्रत्येक वस्तु को शुद्ध-स्वच्छ रखना चाहिए और भोजन भी शुद्धतापूर्वक पकाना चाहिए। इन सब विधि-विधानों का वर्णन भक्तिरसामृत सिन्धु नामक पुस्तक में किया गया है। अर्चना सेवा करने में बत्तीस प्रकार के अपराध हो सकते हैं, अत: यह अत्यन्त आवश्यक है कि इन कार्यों में अशुद्ध न रहा जाय। सामान्यत: जब कोई अनुष्ठान प्रारम्भ किया जाता है, तो शुद्धि के लिए सर्वप्रथम भगवान् विष्णु के पवित्र नाम का उच्चारण किया जाता है। कोई बाहर या भीतर से चाहे शुद्ध रहे या अशुद्ध रहे, यदि वह भगवान् विष्णु के पवित्र नाम का कीर्तन या स्मरण करता है, तो वह तुरन्त पवित्र हो जाता है। वीरभ्रद इत्यादि शिव के अनुचरों की उपस्थिति के कारण यज्ञस्थल अपवित्र हो गया था, अत: सम्पूर्ण यज्ञस्थल को पवित्र करना पड़ा। यद्यपि शिव वहाँ पर थे और वे सर्व मंगलमय हैं, तो भी उस स्थान को पवित्र बनाना आवश्यक था, क्योंकि उनके अनुचरों ने बलपूर्वक वहाँ प्रवेश करके अनेक घृणित कार्य किये थे। शुद्धि का यह कार्य विष्णु के पवित्र नाम त्रिकपाल के उच्चारण से ही सकता था। जिससे तीनों लोक पवित्र किए जा सकते हैं। दूसरे शब्दों में, यहाँ यह स्वीकार किया गया है कि शिव के अनुचर सामान्य रूप से अपवित्र होते हैं। वे स्वच्छ भी नहीं रहते; वे नियमपूर्वक स्नान नहीं करते; वे लम्बे बाल रखते हैं और गाँजा पीते हैं। ऐसी अनियमित आदतों वाले पुरुषों की गिनती भूत-प्रेतों में होती है। चूँकि वे यज्ञस्थल पर उपस्थित थे, अत: वहाँ का वायुमण्डल दूषित हो चुका था और इसे त्रिकपाल आहुति द्वारा शुद्ध किया जाना था जिस का अर्थ है विष्णु के अनुग्रह का आवाहन करना।
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