हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 7: दक्ष द्वारा यज्ञ सम्पन्न करना  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  4.7.19 
तदा स्वप्रभया तेषां द्योतयन्त्या दिशो दश ।
मुष्णंस्तेज उपानीतस्तार्क्ष्येण स्तोत्रवाजिना ॥ १९ ॥
 
शब्दार्थ
तदा—उस समय; स्व-प्रभया—अपने तेज से; तेषाम्—उन सबों के; द्योतयन्त्या—कान्ति से; दिश:—दिशाएँ; दश—दस; मुष्णन्—कम करते हुए; तेज:—तेज; उपानीत:—लाया गया; तार्क्ष्येण—गरुड़ द्वारा; स्तोत्र-वाजिना—जिसके पंख बृहत् तथा रथन्तर कहलाते हैं ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् नारायण स्तोत्र अर्थात् गरुड़ के कन्धे पर आरूढ़ थे, जिसके बड़े-बड़े पंख थे। जैसे ही भगवान् प्रकट हुए, सभी दिशाएँ प्रकाशित हो उठीं जिससे ब्रह्मा तथा अन्य उपस्थित जनों की कान्ति घट गई।
 
तात्पर्य
 नारायण का वर्णन अगले दो श्लोकों में दिया गया है।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥