भगवान् विष्णु असाधारण रूप से सुन्दर लग रहे थे, क्योंकि उनके वक्षस्थल पर ऐश्वर्य की देवी (लक्ष्मी) तथा एक हार विराजमान थे। उनका मुख मन्द हास के कारण अत्यन्त सुशोभित था, जो सारे जगत को और विशेष रूप से भक्तों के मन को मोहने वाला था। भगवान् के दोनों ओर श्वेत चामर डुल रहे थे, मानो श्वेत हंस हों और उनके ऊपर तना हुआ श्वेत छत्र चन्द्रमा के समान लग रहा था।
तात्पर्य
भगवान् विष्णु का हँसता मुख सारे संसार को भानेवाला है। उनकी ऐसी हँसी से न केवल भक्तजन, वरन् अभक्त भी आकर्षित होते हैं। इस श्लोक में सूर्य, चन्द्रमा, आठ दल वाला कमल तथा भौंरे की उपमा चामर, छत्र, मुख में दोनों ओर हिलते कुंडल, तथा काले-काले बालों से दी गई है। इन सबके साथ ही आठों भुजाओं में शंख, चक्र, गदा, पद्म, धनुष, बाण, ढाल तथा तलवार धारण करने के कारण ऐसा भव्य तथा सुन्दर रूप प्रस्तुत था, जो दक्ष तथा ब्रह्मा समेत सभी दर्शकों को मोहित करने वाला था।
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