श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 7: दक्ष द्वारा यज्ञ सम्पन्न करना  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  4.7.22 
तमुपागतमालक्ष्य सर्वे सुरगणादय: ।
प्रणेमु: सहसोत्थाय ब्रह्मेन्द्रत्र्यक्षनायका: ॥ २२ ॥
 
शब्दार्थ
तम्—उसको; उपागतम्—आया हुआ; आलक्ष्य—देखकर; सर्वे—सभी; सुर-गण-आदय:—देवता अथा अन्य लोग; प्रणेमु:— नमस्कार; सहसा—तुरन्त; उत्थाय—खड़े होकर; ब्रह्म—ब्रह्माजी; इन्द्र—इन्द्रदेव; त्रि-अक्ष—शिव (जिनके तीन नेत्र हैं) ; नायका:—के नायकत्व में ।.
 
अनुवाद
 
 जैसे ही भगवान् विष्णु दृष्टिगोचर हुए, वहाँ पर उपस्थित—ब्रह्मा, शिव, गंधर्व तथा वहाँ उपस्थित सभी जनों ने उनके समक्ष सीधे गिरकर (दण्डवत्) सादर नमस्कार किया।
 
तात्पर्य
 ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान् विष्णु शिव तथा ब्रह्मा के भी परमेश्वर हैं, देवताओं, गंधर्वों तथा सामान्य जीवात्माओं का तो कुछ कहना ही नहीं। एक स्तुति में कहा गया है—यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुता:—सभी देवता भगवान् की पूजा करते हैं। इसी प्रकार ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिन:—योगीजन विष्णु के रूप में अपना मन केन्द्रित करते हैं। इस प्रकार भगवान् विष्णु समस्त देवताओं, गन्धर्वों द्वारा, यहाँ तक कि शिव तथा ब्रह्मा द्वारा भी पूज्य हैं। तद् विष्णो: परमं पदं सदा पश्यन्ति सूरय:—अत: विष्णु ही भगवान् हैं। यद्यपि ब्रह्मा ने इसके पूर्व शिव को अपनी स्तुति में परमेश्वर कहा था, किन्तु जब विष्णु प्रकट हुए तो शिव भी सादर नमस्कार करने के लिए उनके समक्ष दण्डवत् गिर पड़े।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥