तत्-तेजसा—उनके शरीर के चमचमाते तेज से; हत-रुच:—मलिन कान्ति वाला; सन्न-जिह्वा:—मौन जीभ से; स-साध्वसा:— उनके भय से भयभीत; मूर्ध्ना—सर सहित; धृत-अञ्जलि-पुटा:—सिर पर हाथ रखे; उपतस्थु:—प्रार्थना की; अधोक्षजम्— अधोक्षज भगवान् की ।.
अनुवाद
नारायण की शारीरिक कान्ति के तेज से अन्य सबों की कान्ति मन्द पड़ गई और सबों का बोलना बन्द हो गया। आश्चर्य तथा सम्मान से भयभीत, सबों ने अपने-अपने सिरों पर हाथ धर लिये और भगवान् अधोक्षज की स्तुति करने के लिए उद्यत हो गए।
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