दक्ष:—दक्ष ने; गृहीत—ग्रहण कर लिया; अर्हण—उचित; सादन-उत्तमम्—पूजा-पात्र; यज्ञ-ईश्वरम्—समस्त यज्ञों के स्वामी को; विश्व-सृजाम्—समस्त प्रजापतियों को; परम्—परम; गुरुम्—उपदेशक; सुनन्द-नन्द-आदि-अनुगै:—सुनन्द तथा नन्द जैस पार्षदों द्वारा; वृतम्—घिरा हुआ; मुदा—प्रसन्नतापूर्वक; गृणन्—स्तुति करते हुए; प्रपेदे—शरण ली; प्रयत:—विनीत भाव से; कृत-अञ्जलि:—हाथ जोड़ कर ।.
अनुवाद
जब भगवान् विष्णु ने यज्ञ में डाली गई आहुतियों को स्वीकार कर लिया तो दक्ष प्रजापति ने अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक उनकी स्तुति करनी प्रारम्भ की। वस्तुत: भगवान् समस्त यज्ञों के स्वामी और सभी प्रजापतियों के गुरु हैं और नन्द-सुनन्द जैसे पुरुष तक उनकी सेवा करते हैं।
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