विद्याधरों ने कहा : हे प्रभु, यह मानव देह सर्वोच्च सिद्धि प्राप्त करने के निमित्त है, किन्तु आपकी बहिरंगा शक्ति के वशीभूत होकर जीवात्मा अपने आपको भ्रमवश देह तथा भौतिक शक्ति मान बैठता है, अत: माया के वश में आकर वह सांसारिक भोग द्वारा सुखी बनना चाहता है। वह दिग्भ्रमित हो जाता है और क्षणिक माया-सुख के प्रति सदैव आकर्षित होता रहता है। किन्तु आपके दिव्य कार्यकलाप इतने प्रबल हैं कि यदि कोई उनके श्रवण तथा कीर्तन में अपने को लगाए तो मोह से उसका उद्धार हो सकता है।
तात्पर्य
यह मनुष्य जीवन अर्थद कहलाता है, क्योंकि आत्मा को परम सिद्धि प्राप्त करने में यह शरीर अत्यन्त सहायक बन सकता है। प्रह्लाद महाराज ने कहा कि यद्यपि यह शरीर क्षणिक है, तो भी यह हमें उच्चतम सिद्धि प्रदान कर सकता है। निम्न योनि से उच्च योनि के विकास क्रम में मनुष्य जीवन एक वरदान के समान है। किन्तु माया इतनी प्रबल है कि हम मनुष्य जीवन के इस महान् वरदान को प्राप्त करने के बावजूद क्षणिक भौतिक सुख के फेर में पडक़र अपने जीवन के उद्देश्य को भूल जाते हैं। हम ऐसी वस्तुओं के प्रति आकृष्ट होते हैं, जो नश्वर हैं। ऐसे आकर्षण का प्रारम्भिक कारण यह नश्वर देह है। जीवन की ऐसी भयानक स्थिति में मुक्ति का एक ही मार्ग है कि परम-ईश्वर के दिव्य कार्यकलापों का कीर्तन किया जाये और उनके पवित्र नाम—हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण, हरे हरे। हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे—का श्रवण किया जाय। युष्मत्-कथामृत-निषेवक: का अर्थ है, “जो अपकी कथाओं, के अमृत का पान करने में लगे रहते हैं।” कृष्ण के उपदेशों तथा कार्यकलापों से सम्बन्धित दो विशेष ग्रन्थ हैं। भगवद्गीता कृष्ण द्वारा दिया गया उपदेश है और श्रीमद्भागवत विशिष्ट रूप से कृष्ण एवं उनके भक्तों की कथाओं से सम्बधित है। ये दोनों ग्रन्थ श्रीकृष्ण के विशेष वचनामृत हैं। जो कोई इन दोनों वैदिक ग्रन्थों के प्रचार कार्य में लगा रहता है उसके लिए माया द्वारा लादे गये बद्ध जीवन से छुटकारा पाना सरल है। मोह की बात यह है कि बद्धजीव अपने आत्म-स्वरूप को जानना नहीं चाहता। वह बाह्य शरीर में अधिक रुचि रखता है, जो एक चकाचौंध के अतिरिक्त कुछ नहीं है और एक निश्चित समय आते ही समाप्त हो जाएगा। जब जीवात्मा को एक शरीर से दूसरे में देहान्तर करना पड़ेगा तो सारा वातावरण बदल जाएगा। तब वह पुन: माया के वश में भिन्न वातावरण में सन्तुष्ट हो जाएगा। यह माया का जादू आवरणात्मिका शक्ति कहलाता है क्योंकि यह इतना प्रबल होता है कि जीवात्मा घृणित से घृणित परिस्थिति में सन्तुष्ट रहता है। यदि वह मल-मूत्र के बीच आँत में या उदर में एक कीड़े के रूप में भी उत्पन्न हो तो भी वह प्रसन्न रहता है। यही माया का आवरण है। किन्तु मनुष्य जीवन ज्ञान-प्राप्ति के लिए एक अवसर है और यदि कोई इस अवसर को हाथ से जाने देता है, तो वह परम अभागा है। माया से बचने का एकमात्र उपाय है अपने को कृष्ण-कथा में लगाये रखना। भगवान् चैतन्य ने ऐसी विधि बताई है कि जिससे हर प्राणी बिना परिवर्तन के अपनी वर्तमान स्थिति में बना रह सकता है, बस उसे समुचित प्रामाणिक स्रोतों से कृष्ण के सम्बन्ध में श्रवण करना होता है। भगवान् चैतन्य ने हर एक को “कृष्ण” शब्द का प्रसार करने का उपदेश दिया। उनका उपदेश है, “आप सभी गुरु बन जाँए। आपका एकमात्र कार्य होगा कि आप जिससे भी मिलें उससे कृष्ण के विषय में या उनके उपदेशों के बारे में बातें करें।” अन्तर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ इसी उद्देश्य से कार्यशील है। हम किसी से यह नहीं कहते कि आने के पूर्व वह अपनी स्थिति बदल ले अपितु हम हर एक को अपने पास बुलाते हैं और हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे, हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे मंत्र का कीर्तन करने के लिए कहते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि यदि कोई केवल कृष्ण का कीर्तन करता है और कृष्ण की कथा को सुनता है, तो उसका जीवन बदल जाएगा, उसे नया आलोक प्राप्त होगा और उसका जीवन सफल हो जाएगा।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.