हे भगवान्, हम आपके दर्शन के लिए प्रतीक्षारत थे क्योंकि हम वैदिक अनुष्ठानों के अनुसार यज्ञ करने में असमर्थ रहे हैं। अत: हम आपसे प्रार्थना करते हैं कि आप हम पर प्रसन्न हों। आपके पवित्र नाम-कीर्तन मात्र से समस्त बाधाएँ दूर हो जाती हैं। हम आपके समक्ष आपको सादर नमस्कार करते हैं।
तात्पर्य
ब्राह्मण पुरोहित अत्यन्त आशान्वित हुए कि भगवान् विष्णु के आ जाने से अब उनका यज्ञ निर्विघ्न समाप्त हो सकेगा। इस श्लोक में ब्राह्मणों का यह कथन सारगर्भित हैं, “आपके पवित्र नाम का जप करके ही हम बाधाओं को पार कर सकते हैं, किन्तु आप इस समय साक्षात् उपस्थित हैं।” दक्ष का यज्ञ शिव के अनुचरों तथा शिष्यों द्वारा बाधित कर दिया गया था। एक तरह से ब्राह्मणों ने शिव के अनुचरों की आलोचना की, किन्तु चूँकि ब्राह्मण भगवान् विष्णु द्वारा सदा रक्षित हैं, अत: शिव के अनुचर उनके यज्ञ में किसी प्रकार की बाधा उपस्थित नहीं कर सकते थे। कहावत है, “जाको राखै साइयाँ मारि सकै नहिं कोय” और जब कृष्ण किसी को मारना चाहते हैं, तो उसको कोई बचा भी नहीं सकता। इसका ज्वलन्त प्रमाण रावण है। रावण शिव का महान् भक्त था, किन्तु जब भगवान् रामचन्द्र ने उसे मारना चाहा तो शिव उसकी रक्षा नहीं कर पाये। यदि कोई देवता, चाहे वह शिव या ब्रह्मा ही क्यों न हों, किसी भक्त को हानि पहुँचाना चाहता है, तो कृष्ण उसकी रक्षा करते हैं। किन्तु यदि कृष्ण किसी को मारना चाहते हैं, जैसे कि रावण या हिरण्यकशिपु को, तो कोई भी देवता उसकी रक्षा नहीं कर पाता।
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