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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 7: दक्ष द्वारा यज्ञ सम्पन्न करना  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  4.7.5 
बाहुभ्यामश्विनो: पूष्णो हस्ताभ्यां कृतबाहव: ।
भवन्‍त्वध्वर्यवश्चान्ये बस्तश्मश्रुर्भृगुर्भवेत् ॥ ५ ॥
 
शब्दार्थ
बाहुभ्याम्—दो भुजाओं से; अश्विनो:—अश्विनी कुमारों की; पूष्ण:—पूषा के; हस्ताभ्याम्—दो हाथों से; कृत-बाहव:—बाहुओं की इच्छा रखने वाले; भवन्तु—हों; अध्वर्यव:—पुरोहितगण; —तथा; अन्ये—अन्य; बस्त-श्मश्रु:—बकरे की दाढ़ी; भृगु:— भृगु; भवेत्—उसके हों ।.
 
अनुवाद
 
 जिन लोगों की भुजाएँ कट गई हैं, उन्हें अश्विनी कुमार की बाहों से काम करना होगा और जिनके हाथ कट गये हैं उन्हें पूषा के हाथों से काम करना होगा। पुरोहितों को भी तदनुसार कार्य करना होगा। जहाँ तक भृगु का प्रश्न है, उन्हें बकरे की दाढ़ी प्राप्त होगी।
 
तात्पर्य
 दक्ष के कहर समर्थक भृगु मुनि को उस बकरे की दाढ़ी मिली जिसका सिर दक्ष को मिला था। दक्ष के सिर के विनिमय से ऐसा लगता है कि यह आधुनिक वैज्ञानिक सिद्धान्त ठीक नहीं है कि मस्तिष्क ही बुद्धिमत्ता वैज्ञानिक का कारण है। दक्ष तथा बकरे के मस्तिष्क भिन्न-भिन्न पदार्थों के हैं, तो भी दक्ष अपनी तरह कार्य करता रहा, यद्यपि उसके बकरे का सिर लगा दिया गया था। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि किसी व्यक्ति की चेतना विशेष ही कार्य करती है। मस्तिष्क पदार्थ निमित्तमात्र है, जिसका वास्तविक बुद्धि से कोई सरोकार नहीं। वास्तविक बुद्धि, मन तथा चेतना व्यक्ति विशेष के अंश हैं। अगले श्लोकों से पता लगेगा कि दक्ष के सिर के स्थान पर बकरे का सिर लगने से वह पहले की ही भाँति बुद्धिमान था। उसने अत्यन्त सुन्दर ढंग से शिव तथा विष्णु को प्रसन्न करने के लिए प्रार्थना की, जो बकरे के लिए सम्भव नहीं है। इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि बुद्धि का केन्द्र मस्तिष्क-पदार्थ नहीं है। यह तो आत्मा विशेष की चेतना है, जो बुद्धिपूर्वक कार्य करती है। समग्र कृष्णभावनामृत-आन्दोलन चेतना की शुद्धि के लिए है। इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता कि किसी का मस्तिष्क कैसा है, क्योंकि यदि वह अपनी चेतना को पदार्थ से कृष्ण में स्थानान्तरित कर देता है, तो उसका जीवन सफल हो जाता है। इसकी पुष्टि भगवान् ने स्वयं भगवद्गीता में की है कि जो कोई कृष्णभावनामृत ग्रहण करता है, वह जीवन की उच्चतम सिद्धि प्राप्त करता है, भले ही वह कितने ही निकृष्ट जीवन में पतित क्यों न चुका हो। विशेष रूप से यदि कोई कृष्णभावनाभावित होता है, तो वह अपने इस भौतिक शरीर को त्यागकर भगवान् के धाम को जाता है।
 
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