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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 7: दक्ष द्वारा यज्ञ सम्पन्न करना  »  श्लोक 50
 
 
श्लोक  4.7.50 
श्रीभगवानुवाच
अहं ब्रह्मा च शर्वश्च जगत: कारणं परम् ।
आत्मेश्वर उपद्रष्टा स्वयंद‍ृगविशेषण: ॥ ५० ॥
 
शब्दार्थ
श्री-भगवान्—भगवान् विष्णु ने; उवाच—कहा; अहम्—मैं; ब्रह्मा—ब्रह्मा; —तथा; शर्व:—शिव; —तथा; जगत:—दृश्य जगत का; कारणम्—कारण; परम्—परम; आत्म-ईश्वर:—परमात्मा; उपद्रष्टा—साक्षी; स्वयम्-दृक्—आत्म-निर्भर; अविशेषण:—भेदरहित ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् विष्णु ने उत्तर दिया ब्रह्मा, शिव तथा मैं इस दृश्य जगत के परम कारण हैं। मैं परमात्मा, स्व:निर्भर साक्षी हूँ। किन्तु निर्गुण-निराकार रूप में ब्रह्मा, शिव तथा मुझमें कोई अन्तर नहीं है।
 
तात्पर्य
 ब्रह्मा की उत्पत्ति विष्णु के दिव्य शरीर से हुई और शिव का जन्म ब्रह्मा के शरीर से हुआ। अत: भगवान् विष्णु परम कारण हैं। वेदों में भी वर्णित है कि प्रारम्भ में केवल विष्णु या नारायण थे; ब्रह्मा या शिव नहीं थे। इसी प्रकार से शंकराचार्य ने भी पुष्टि की है—नारायण: पर:—नारायण अर्थात् भगवान् विष्णु मूल रूप हैं और ब्रह्मा तथा शिव सृष्टि के बाद प्रकट हुए। भगवान् विष्णु आत्मेश्वर अर्थात् सबों में स्थित परमात्मा भी हैं। उन्हीं के निर्देश से अन्त: कारण से प्रत्येक वस्तु प्रेरित होती है। उदाहरणार्थ, श्रीमद्भागवत के प्रारम्भ में कहा गया है—तेने ब्रह्म हृदा—उन्होंने पहले अन्त: से ब्रह्मा को शिक्षा दी।

भगवद्गीता (१०.२) में भगवान् कृष्ण कहते हैं—अहं आदिर्हि देवानाम्—भगवान् विष्णु या कृष्ण ब्रह्मा तथा शिव समेत समस्त देवताओं के मूल हैं। एक अन्य स्थल पर श्रीकृष्ण भगवद्गीता (१०.८) में कहते हैं—अहं सर्वस्य प्रभव:—मुझसे हर वस्तु उत्पन्न है। इसमें सभी देवता भी सम्मिलित हैं। इसी प्रकार वेदान्त-सूत्र में—जन्माद्यस्य यत: और उपनिषदों का कथन है—यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते। भगवान् विष्णु अपनी शक्ति से प्रत्येक वस्तु को उत्पन्न करने वाले, उसके पालन करने वाले और संहार करने वाले हैं। इस प्रकार इनकी शक्तियाँ एक दूसरे से क्रिया-प्रतिक्रिया द्वारा इस दृश्य संसार का सृजन करती हैं और सम्पूर्ण सृष्टि लय भी कर देती हैं। इस प्रकार भगवान् कारण हैं और करण भी हैं। हम जो भी प्रभाव देखते हैं वह उनकी शक्ति की प्रतिक्रिया है और चूँकि शक्ति उन्हीं से उद्भूत है, अत: वे कारण और करण (कार्य) दोनों ही हैं। एक ही समय में प्रत्येक से प्रत्येक वस्तु भिन्न है और समान भी है। कहा गया है कि प्रत्येक वस्तु ब्रह्म है—सर्वं खल्विदं ब्रह्म—सर्वोच्च चिन्तन में ब्रह्म से परे कुछ नहीं, अत: ब्रह्मा तथा शिव भी उनसे अभिन्न हैं।

 
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