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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 7: दक्ष द्वारा यज्ञ सम्पन्न करना  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  4.7.6 
मैत्रेय उवाच
तदा सर्वाणि भूतानि श्रुत्वा मीढुष्टमोदितम् ।
परितुष्टात्मभिस्तात साधु साध्वित्यथाब्रुवन् ॥ ६ ॥
 
शब्दार्थ
मैत्रेय:—मैत्रेय मुनि ने; उवाच—कहा; तदा—उस समय; सर्वाणि—समस्त; भूतानि—मनुष्य; श्रुत्वा—सुनकर; मीढु:-तम—वर देने वालों में श्रेष्ठ (शिव); उदितम्—कहा गया; परितुष्ट—सन्तुष्ट होकर; आत्मभि:—हृदय तथा आत्मा से; तात—हे विदुर; साधु साधु—धन्य-धन्य हुआ; इति—इस प्रकार; अथ अब्रुवन्—जैसा हम कह चुके हैं ।.
 
अनुवाद
 
 मैत्रेय मुनि ने कहा : हे विदुर, वहाँ पर उपस्थित सभी मनुष्य सर्वश्रेष्ठ वरदाता शिव के वचनों को सुनने से अत्यन्त सन्तुष्ट होकर गदगद हो गये।
 
तात्पर्य
 इस श्लोक में शिव को मीढुष्टम अर्थात् सर्वश्रेष्ठ वरदाता कहा गया है। उन्हें आशुतोष भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि वे बहुत जल्दी प्रसन्न होने वाले और जल्दी क्रुद्ध होने वाले हैं। भगवद्गीता में बताया गया है कि अल्पज्ञ व्यक्ति भौतिक वरदानों के लिए देवताओं के पास जाते हैं। इसके लिए सामान्यत: लोग शिव के पास जाते हैं, जो भक्तों पर जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं, और उन्हें बिना विचारे वर दे देते हैं, अपने अत: वे मीढुष्टम कहे गये हैं। सांसारिक व्यक्ति सदैव भौतिक लाभ के लिए उत्सुक रहते हैं किन्तु उन्हें आत्मिक लाभ से कोई प्रयोजन नहीं रहता।

निस्सन्देह, कभी-कभी भगवान् शिव आध्यात्मिक जीवन के सर्वश्रेष्ठ वरदाता बन जाते हैं। कहा जाता है कि एक बार एक दरिद्र ब्राह्मण ने शिव की पूजा किसी वर के लिए की और शिवजी ने उस भक्त को सलाह दी कि वह सनातन गोस्वामी के पास जाए। वह भक्त उनके पास गया और उन्हें बताया कि शिवजी ने कहा है कि मैं आपसे अच्छा से अच्छा वरदान माँगूँ। सनातन के पास एक पारस पत्थर था, जिसे वे कूड़े में रख आये थे। उस दरिद्र ब्राह्मण की प्रार्थना पर उन्होंने उसे वह पारस पत्थर दे दिया तो इससे वह ब्राह्मण अत्यन्त प्रसन्न हुआ। वह लोहे में उसे छुआ कर जितना भी सोना चाहता बना सकता था। किन्तु सनातन के पास से जाने के बाद उसने सोचा, “यदि पारस पत्थर ही सर्वश्रेष्ठ वरदान था, तो सनातन गोस्वामी ने इसे कूड़े में क्यों रखा था?” अत: उसने उसे लौटाते हुए सनातन गोस्वामी से कहा, “महोदय, यदि यह सर्वश्रेष्ठ वरदान है, तो आपने इसे कूड़े में क्यों छिपा रखा था?” तब सनातन गोस्वामी ने बताया, “वास्तव में यह सर्वश्रेष्ठ वर नहीं है। तो क्या तुम मुझ से सर्वश्रेष्ठ वर प्राप्त करना चाहते हो?” ब्राह्मण ने कहा, “हाँ, शिव ने मुझे आपके पास सर्वश्रेष्ठ वर प्राप्त करने के लिए भेजा है।” तब सनातन गोस्वामी ने उससे कहा कि वह पास के जलाशय में उस पारस पत्थर को फेंक कर वापस आए। उस ब्राह्मण ने वैसा ही किया और जब वह लौटा तो उसे उन्होंने हरे- कृष्ण मंत्र से दीक्षित किया। इस प्रकार शिव के वर से ब्राह्मण को भगवान् कृष्ण के सर्वश्रेष्ठ भक्त की संगति मिली और वह हरे-कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे, हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे, महामंत्र में दीक्षित हो गया।

 
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>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥