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श्लोक 4.7.60  |
एतद्भगवत: शम्भो: कर्म दक्षाध्वरद्रुह: ।
श्रुतं भागवताच्छिष्यादुद्धवान्मे बृहस्पते: ॥ ६० ॥ |
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शब्दार्थ |
एतत्—यह; भगवत:—समस्त ऐश्वर्य के स्वामी; शम्भो:—शम्भु (शिव) का; कर्म—कथा; दक्ष-अध्वर-द्रुह:—जिसने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस किया; श्रुतम्—सुना गया; भागवतात्—परम भक्त से; शिष्यात्—शिष्य से; उद्धवात्—उद्धव से; मे—मेरे द्वारा; बृहस्पते:—बृहस्पति के ।. |
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अनुवाद |
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मैत्रेय ने कहा : हे विदुर, मैंने परम भक्त एवं बृहस्पति के शिष्य उद्धव से शिव द्वारा ध्वंस किये गये दक्ष-यज्ञ की यह कथा सुनी थी। |
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