श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 7: दक्ष द्वारा यज्ञ सम्पन्न करना  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  4.7.7 
ततो मीढ्‍वांसमामन्‍त्र्‍य शुनासीरा: सहर्षिभि: ।
भूयस्तद्देवयजनं समीढ्‍वद्वेधसो ययु: ॥ ७ ॥
 
शब्दार्थ
तत:—तत्पश्चात्; मीढ्वांसम्—शिव; आमन्त्र्य—बुलाकर; शुनासीरा:—इन्द्र इत्यादि देवता; सह ऋषिभि:—भृगु इत्यादि ऋषियों सहित; भूय:—पुन:; तत्—उस; देव-यजनम्—वह स्थान जहाँ देवता पूजे जाते हैं; स-मीढ्वत्—शिव समेत; वेधस:—ब्रह्मा सहित; ययु:—गये ।.
 
अनुवाद
 
 तब मुनियों के प्रमुख भृगु ने शिवजी को यज्ञशाला में पधारने के लिए आमंत्रित किया। इस तरह से ऋषिगण, शिवजी तथा ब्रह्मा समेत सभी देवता उस स्थान पर गये जहाँ वह महान् यज्ञ सम्पन्न हो रहा था।
 
तात्पर्य
 दक्ष द्वारा आयोजित सारा यज्ञ शिव द्वारा नष्ट-भ्रष्ट कर दिया गया था। अत: वहाँ पर उपस्थित समस्त देवताओं ने ब्रह्मा तथा ऋषियों समेत शिवजी से विशेष अनुरोध किया कि वे वहाँ पधार कर यज्ञ-अग्नि को पुन: प्रज्ज्वलित करें। एक सामान्य कहावत है शिव-हीन-यज्ञ जिसका अर्थ है “शिव के बिना कोई भी यज्ञ असफल रहता है।” भगवान् विष्णु यज्ञेश्वर हैं, तो भी प्रत्येक यज्ञ में आवश्यक होता है कि सभी देवता, जिनमें ब्रह्मा तथा शिव प्रमुख हैं, उपस्थित हों।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥