तम्—उसको; नि:श्वसन्तम्—जोर से साँस लेते; स्फुरित—कम्पित; अधर-ओष्ठम्—नीचे तथा ऊपर के होंठ; सुनीति:—सुनीति; उत्सङ्गे—अपनी गोद में; उदूह्य—उठाकर; बालम्—पुत्र को; निशम्य—सुनकर; तत्-पौर-मुखात्—अन्य पुरजनों के मुख से; नितान्तम्—सारा हाल; सा—वह; विव्यथे—दुखी हुई; यत्—जो; गदितम्—कहा गया; स-पत्न्या—सौत द्वारा ।.
अनुवाद
जब ध्रुव महाराज अपनी माता के पास आये तो उनके होंठ क्रोध से काँप रहे थे और वे सिसक-सिसक कर जोर से रो रहे थे। रानी सुनीति ने अपने लाड़ले को तुरन्त गोद में उठा लिया और अन्त:पुर के वासियों ने सुरुचि के जो कटु वचन सुने थे उन सबको विस्तार से कह सुनाया। इस तरह सुनीति अत्यधिक दुखी हुई।
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