ब्रह्मा का अन्य पुत्र अधर्म था जिसकी पत्नी का नाम मृषा था। उनके संयोग से दो असुर हुए जिनके नाम दम्भ अर्थात धोखेबाज तथा माया अर्थात ठगिनी थे। इन दोनों को निर्ऋति नामक असुर ले गया, क्योंकि उसके कोई सन्तान न थी।
तात्पर्य
यहाँ पर ज्ञात होता है कि ब्रह्मा के अधर्म नाम का भी एक पुत्र था जिसने अपनी बहन मृषा के साथ विवाह कर लिया। भाई तथा बहन के बीच विषयी जीवन का यह सूत्रपात है। मानव समाज में ऐसा अस्वाभाविक संयोग वहीं सम्भव है जहाँ अधर्म हो। यह पता चलता है कि सृष्टि के प्रारम्भ में ब्रह्मा ने न केवल सनक, सनातन तथा नारद जैसे साधु पुत्र उत्पन्न किये, वरन् निर्ऋति, अधर्म, दम्भ तथा मृषा नामक आसुरी सन्तानें भी उत्पन्न कीं। प्रारम्भ में ब्रह्मा ने प्रत्येक वस्तु की
सृष्टि की। नारद के सम्बन्ध में कहा जाता है कि उनके पूर्व जीवन पवित्र था और उनकी संगति अच्छी थी अत: वे नारद के रूप में उत्पन्न हुए। अन्य पुत्र भी अपनी क्षमता तथा पृष्ठभूमि के अनुसार उत्पन्न हुए थे। कर्म का नियम जन्म-जन्मांतर तक चलता है और जब नवीन सृष्टि होती है, तो वही कर्म जीवात्माओं के साथ वापस चला आता है। ये सभी अपने-अपने कर्म के अनुसार विभिन्न क्षमताओं के साथ उत्पन्न हुए, यद्यपि उनके आदि पिता ब्रह्मा हैं, जो भगवान् के गुण-अवतार हैं।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥