अहो—कितना आश्चर्यमय है; तेज:—बल; क्षत्रियाणाम्—क्षत्रियों का; मान-भङ्गम्—प्रतिष्ठा को धक्का; अमृष्यताम्—सहन कर सकने में अक्षम; बाल:—मात्र बालक; अपि—यद्यपि; अयम्—यह; हृदा—हृदय में; धत्ते—घर कर लिया है; यत्—जो; स- मातु:—अपनी विमाता का; असत्—अरुचिकर, कटु; वच:—वचन ।.
अनुवाद
अहो! शक्तिशाली क्षत्रिय कितने तेजमय होते हैं! वे थोड़ा भी मान-भंग सहन नहीं कर सकते। जरा सोचो तो, यह नन्हा सा बालक है, तो भी उसकी सौतेली माता के कटु वचन उसके लिए असह्य हो गये।
तात्पर्य
क्षत्रियों के गुणों का वर्णन भगवद्गीता में किया गया है। महत्त्वपूर्ण गुण दो हैं—आत्म- सम्मान तथा युद्ध भूमि में पीठ न दिखाना। ऐसा प्रतीत होता है कि ध्रुव महाराज के शरीर में क्षत्रिय रक्त स्वभावत: अत्यन्त सक्रिय था। यदि परिवार में ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य संस्कृति का पालन होता है, तो स्वभावत: पुत्रों तथा प्रपौत्रों को उस जाति विशेष के गुण उत्तराधिकार में प्राप्त होते हैं। अत: वैदिक पद्धति में संस्कारों का दृढ़ता से पालन किया जाता है। यदि परिवार में प्रचलित सुधारवादी नियमों को कोई ग्रहण नहीं करता तो वह तुरन्त निम्न स्तर को प्राप्त जाता है।
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