श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 8: ध्रुव महाराज का गृहत्याग और वनगमन  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  4.8.4 
दुरुक्तौ कलिराधत्त भयं मृत्युं च सत्तम ।
तयोश्च मिथुनं जज्ञे यातना निरयस्तथा ॥ ४ ॥
 
शब्दार्थ
दुरुक्तौ—दुरुक्ति से; कलि:—कलि; आधत्त—उत्पन्न किया; भयम्—भय; मृत्युम्—मृत्यु; च—तथा; सत्-तम—हे उत्तम पुरुषों में श्रेष्ठ; तयो:—उन दोनों के; च—तथा; मिथुनम्—संयोग से; जज्ञे—उत्पन्न हुए; यातना—अत्यधिक पीड़ा; निरय:— नरक; तथा—और भी ।.
 
अनुवाद
 
 हे श्रेष्ठ पुरुषों में महान्, कलि तथा दुरुक्ति से मृत्यु तथा भीति नामक सन्तानें उत्पन्न हुईं। फिर इनके संयोग से यातना और निरय (नरक) उत्पन्न हुए।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥