|
|
|
श्लोक 4.8.4  |
दुरुक्तौ कलिराधत्त भयं मृत्युं च सत्तम ।
तयोश्च मिथुनं जज्ञे यातना निरयस्तथा ॥ ४ ॥ |
|
शब्दार्थ |
दुरुक्तौ—दुरुक्ति से; कलि:—कलि; आधत्त—उत्पन्न किया; भयम्—भय; मृत्युम्—मृत्यु; च—तथा; सत्-तम—हे उत्तम पुरुषों में श्रेष्ठ; तयो:—उन दोनों के; च—तथा; मिथुनम्—संयोग से; जज्ञे—उत्पन्न हुए; यातना—अत्यधिक पीड़ा; निरय:— नरक; तथा—और भी ।. |
|
अनुवाद |
|
हे श्रेष्ठ पुरुषों में महान्, कलि तथा दुरुक्ति से मृत्यु तथा भीति नामक सन्तानें उत्पन्न हुईं। फिर इनके संयोग से यातना और निरय (नरक) उत्पन्न हुए। |
|
|
|
शेयर करें
 |