तरुणम्—जवान; रमणीय—आकर्षक; अङ्गम्—शरीर के सभी अंग; अरुण-ओष्ठ—उदीयमान सूर्य की तरह लाल-लाल होंठ; ईक्षण-अधरम्—उसी प्रकार की आँखें; प्रणत—शरणागत; आश्रयणम्—शरणागतों की शरण (आश्रय); नृम्णम्—दिव्य रूप से मनोहर; शरण्यम्—जिसकी शरण में जाने योग्य हो; करुणा—मानो दया से पूर्ण; अर्णवम्—समुद्र ।.
अनुवाद
नारद मुनि ने आगे कहा : भगवान् का रूप सदैव युवावस्था में रहता है। उनके शरीर का अंग-प्रत्यंग सुगठित एवं दोषरहित है। उनके नेत्र तथा होंठ उदीयमान सूर्य की भाँति गुलाबी से हैं। वे शरणागतों को सदैव शरण देने वाले हैं और जिसे उनके दर्शन का अवसर मिलता है, वह सभी प्रकार से संतुष्ट हो जाता है। दया के सिन्धु होने के कारण भगवान् शरणागतों के स्वामी होने के योग्य हैं।
तात्पर्य
हर एक को अपने से बड़े के प्रति समर्पण करना पड़ता है। हम जीवों की यही प्रकृति है। इस समय हम किसी के प्रति समर्पण करने का प्रयास करते रहते हैं—चाहे वह समाज हो, या राष्ट्र, परिवार, राजसत्ता या सरकार। समर्पण की प्रणाली पहले से विद्यमान है, किन्तु यह कभी-भी पूर्ण नहीं, क्योंकि जिस व्यक्ति या संस्था को हम समर्पण करते हैं, वह अपूर्ण है और अनेक चरम प्रयोजनों के कारण हमारा समर्पण भी अधूरा है। फलत: इस भौतिक जगत में न तो कोई किसी के समर्पण को स्वीकार करने का सुपात्र है और न कोई तब तक पूर्ण रूप से समर्पित होता है, जब तक वह ऐसा करने के लिए बाध्य न हो जाय। किन्तु यहाँ समर्पण-विधि ऐच्छिक है और भगवान् इस समर्पण को स्वीकार करने के सर्वथा योग्य हैं। जीव का यह समर्पण उस समय स्वत: हो जाता है जब मनुष्य भगवान् के तरुण रूप को देखता है।
नारद मुनि ने जो विवरण दिया है, वह काल्पनिक नहीं है। भगवान् के रूप को परम्परा से समझा जा सकता है। मायावादी दार्शनिकों का कहना है कि उन्हें उस भगवान् के रूप की कल्पना करनी पड़ती है, किन्तु नारद मुनि ने ऐसा नहीं कहा। अपितु वे भगवान् का वर्णन प्रामाणिक स्रोतों से करते हैं। वे स्वयं अधिकारी हैं, वे वैकुण्ठलोक जा सकते हैं और भगवान् का साक्षात् दर्शन कर सकते हैं। उनका अत: भगवान् के अंगों का शारीरिक वर्णन काल्पनिक नहीं हैं। कभी-कभी हम अपने विद्यार्थियों को भगवान् के शारीरिक स्वरूप के विषय में शिक्षा देते हैं और वे उसका चित्रण करते हैं। उनके चित्रण काल्पनिक नहीं होते। यह विवरण शिष्य-परम्परा से प्राप्त होता है, जैसाकि नारदमुनि से प्राप्त होता है जिन्होंने भगवान् तथा उनके शारीरिक स्वरूप का दर्शन किया है। अत: ऐसे विवरणों को, यदि वे चित्रित हों, तो स्वीकार कर लेना चाहिए; यह काल्पनिक चित्रण नहीं है।
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