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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 8: ध्रुव महाराज का गृहत्याग और वनगमन  »  श्लोक 48
 
 
श्लोक  4.8.48 
किरीटिनं कुण्डलिनं केयूरवलयान्वितम् ।
कौस्तुभाभरणग्रीवं पीतकौशेयवाससम् ॥ ४८ ॥
 
शब्दार्थ
किरीटिनम्—मुकुट धारण किये भगवान्; कुण्डलिनम्—कुण्डल सहित; केयूर—रत्नजटित हार; वलय-अन्वितम्—रत्नजटित बाजूबन्द सहित; कौस्तुभ-आभरण-ग्रीवम्—जिनकी ग्रीवा (गर्दन) कौस्तुभ मणि से अलंकृत है; पीत-कौशेय-वाससम्—जो पीले रेशम का वस्त्र धारण किये हैं ।.
 
अनुवाद
 
 पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् वासुदेव का सारा शरीर आभूषित है। वे बहुमूल्य मणिमय मुकुट, हार तथा बाजूबन्द धारण किये हुए हैं। उनकी गर्दन कौस्तुभ मणि से अलंकृत है और वे पीत रेशमी वस्त्र धारण किये हैं।
 
 
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