जप: च—इस सम्बन्ध में मंत्र का जाप; परम:—अत्यन्त; गुह्य:—गोपनीय; श्रूयताम्—सुनो; मे—मुझसे; नृप-आत्मज—हे राजपुत्र; यम्—जो; सप्त-रात्रम्—सात रात्रियाँ; प्रपठन्—जपता हुआ; पुमान्—पुरुष; पश्यति—देख सकता है; खे-चरान्— आकाश में चलने वाले प्राणियों को ।.
अनुवाद
हे राजपुत्र, अब मैं तुम्हें वह मंत्र बताऊँगा जिसे इस ध्यान विधि के समय जपना चाहिए। जो कोई इस मंत्र को सात रात सावधानी से जपता है, वह आकाश में उडऩे वाले सिद्ध मनुष्यों को देख सकता है।
तात्पर्य
इस ब्रह्माण्ड के अन्तर्गत सिद्धलोक नामक एक लोक है। सिद्ध लोक के वासी स्वभावत: योग की सिद्धियों में पारंगत होते हैं। ये सिद्धियाँ आठ प्रकार की हैं, जिनके द्वारा मनुष्य सूक्ष्म से सूक्ष्म, हल्के से हल्का या विशाल से विशालतम हो सकता है; वह जो भी इच्छा करे उसे तुरन्त प्राप्त कर सकता है, यहाँ तक कि वह लोक की सृष्टि कर सकता है। कुछ सिद्धियाँ इस प्रकार हैं। लघिमा सिद्धि के द्वारा सिद्धलोक के वासी किसी वायुयान या विमान के बिना उड़ सकते हैं। यहाँ पर नारद मुनि ने ध्रुव महाराज से संकेत किया है कि भगवान् के दिव्य रूप का ध्यान और साथ ही मंत्र का जाप करते हुए मनुष्य सात दिनों में इतना सिद्ध हो सकता है कि वह आकाश में उडऩे वाले मनुष्यों को देख सकता है। नारद मुनि ने जप: शब्द का प्रयोग किया है, जो बताता है कि जिस मंत्र का जप किया जाना है, वह अत्यन्त गोपनीय है। कोई यह प्रश्न कर सकता है, “यदि यह गोपनीय है, तो फिर श्रीमद्भागवत में वह लिखित रूप में क्यों वर्णित है?” यह इस रूप में गोपनीय है—मनुष्य छपा हुआ मंत्र कहीं से प्राप्त कर सकता है, किन्तु जब तक यह दीर्घ शिष्य-परम्परा द्वारा स्वीकृत नहीं होता, तब तक वह मंत्र कार्य नहीं करता। प्रामाणिक सूत्रों का कहना है कि जब तक कोई मंत्र परम्परा से प्राप्त नहीं होता, तब तक उसकी कोई क्षमता नहीं होती।
इस श्लोक में एक अन्य बात स्थापित की गई है और वह है कि मंत्रोचारण के साथ-साथ ध्यान करना चाहिए। इस युग में हरे कृष्ण मंत्र का जाप ही ध्यान की सरलतम विधि है। ज्योंही कोई हरे कृष्ण मंत्र का उच्चारण करता है, उसे कृष्ण, राम तथा उनकी शक्तियों के दर्शन होते हैं और समाधि की यही पूर्ण अवस्था है। मनुष्य को हरे कृष्ण मंत्र का जप करते समय बनावटी विधि से भगवान् के रूपदर्शन का प्रयत्न नहीं करना चाहिए, अपितु जब यह कीर्तन (जप) निर्दोषपूर्ण भाव से किया जाता है, तो भगवान् स्वत: कीर्तन करने वाले के समक्ष प्रकट हो जाएंगे। अत: जपकर्ता को शब्द तरंग सुनने में ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। भगवान् बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के ही स्वत: प्रकट होंगे।
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