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श्लोक 4.8.73  |
द्वितीयं च तथा मासं षष्ठे षष्ठेऽर्भको दिने ।
तृणपर्णादिभि: शीर्णै: कृतान्नोऽभ्यर्चयन्विभुम् ॥ ७३ ॥ |
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शब्दार्थ |
द्वितीयम्—अगले मास; च—भी; तथा—उपयुक्त विधि से; मासम्—माह; षष्ठे षष्ठे—प्रत्येक छह दिन पर; अर्भक:—अबोध बालक; दिने—दिने में; तृण-पर्ण-आदिभि:—घास-पात से; शीर्णै:—शुष्क; कृत-अन्न:—अन्न के रूप में; अभ्यर्चयन्—और इस प्रकार पूजा करता रहा; विभुम्—भगवान् के लिए ।. |
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अनुवाद |
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दूसरे महीने में महाराज ध्रुव छह-छह दिन बाद खाने लगे। शुष्क घास तथा पत्ते ही उनके खाद्य पदार्थ थे। इस प्रकार उन्होंने अपनी पूजा चालू रखी। |
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