चतुर्थम्—चौथे; अपि—भी; वै—उस प्रकार; मासम्—माह; द्वादशे द्वादशे—प्रति बारहवें; अहनि—दिन में; वायु—हवा; भक्ष:—खाकर; जित-श्वास:—श्वास क्रिया को वश में करके; ध्यायन्—ध्यान करते हुए; देवम्—परमेश्वर की; अधारयत्— पूजा की ।.
अनुवाद
चौथे महीने में ध्रुव महाराज प्राणायाम में पटु हो गये और इस प्रकार प्रत्येक बारहवें दिन वायु को श्वास से भीतर ले जाते। इस प्रकार अपने स्थान पर पूर्ण रूप से स्थिर होकर उन्होंने भगवान् की पूजा की।
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