श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 8: ध्रुव महाराज का गृहत्याग और वनगमन  »  श्लोक 75
 
 
श्लोक  4.8.75 
चतुर्थमपि वै मासं द्वादशे द्वादशेऽहनि ।
वायुभक्षो जितश्वासो ध्यायन्देवमधारयत् ॥ ७५ ॥
 
शब्दार्थ
चतुर्थम्—चौथे; अपि—भी; वै—उस प्रकार; मासम्—माह; द्वादशे द्वादशे—प्रति बारहवें; अहनि—दिन में; वायु—हवा; भक्ष:—खाकर; जित-श्वास:—श्वास क्रिया को वश में करके; ध्यायन्—ध्यान करते हुए; देवम्—परमेश्वर की; अधारयत्— पूजा की ।.
 
अनुवाद
 
 चौथे महीने में ध्रुव महाराज प्राणायाम में पटु हो गये और इस प्रकार प्रत्येक बारहवें दिन वायु को श्वास से भीतर ले जाते। इस प्रकार अपने स्थान पर पूर्ण रूप से स्थिर होकर उन्होंने भगवान् की पूजा की।
 
 
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